औरत - लेखनी प्रतियोगिता -17-Feb-2022
औरत
औरत विधाता का होती है ऐसा अनुपम सृजन
विलग नहीं रह सके उससे सृष्टि का कोई जन।
औरत है रानी पद्मिनी जो जौहर कर जाती है
जोधा भी है जो सर्वधर्म समभाव जगाती है।
औरत ज़िंदगी में विभिन्न भूमिकाएँ निभाती है
अपनी हर ज़िम्मेदारी को पूरा करती जाती है।
औरत है राधा जो प्रेम की प्रतिमूर्ति कहलाती है
औरत है वो मीरा जो दर्द दीवानी बन जाती है।
सादगी की प्रतिमा मदर टेरेसा न है अनजान
करी सबकी सेवा, माना सबको अपनी संतान।
औरत है वह पन्नाधाय करती सर्वस्व समर्पण
देश सेवा के लिए किया प्रिय पुत्र भी अर्पण।
औरत है लक्ष्मीबाई, बनी जो वीरता की प्रतीक
अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ाए, देशद्रोही हुए ठीक।
औरत कभी अन्नपूर्णा, कभी काली बन जाती है
गंगा बन धोती पाप, ज्ञानदायिनी भी कहलाती है।
बहू बन घर संवारती, पत्नी बन प्यार लुटाती है
माँ बन औलाद हेतु अपना अस्तित्व भुलाती है।
कभी गुंजन,नीरजा बन पिता का बनती गुरुर
कभी अरुणिमा व सुधा चंद्रन बन बढ़ाती नूर।
महिषासुर मर्दिनी बन पापियों के काटती सर
कभी निराला की मजदूरनी बन तोड़ती पत्थर।
कभी अबला बन लोगों के सह जाती अत्याचार
कभी बनी शिव की शक्ति और दुर्गा का अवतार।
विधाता की इस कृति के रूपों की हैं अनंत परत
अटल चुनौतियों का सामना करे, कहलाये औरत।
डॉ. अर्पिता अग्रवाल
नोएडा, उत्तरप्रदेश
Ekta shrivastava
18-Feb-2022 12:07 PM
Superb post
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Shrishti pandey
18-Feb-2022 11:03 AM
Nice
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Dr. Arpita Agrawal
18-Feb-2022 12:00 PM
Thanks a lot Shrishti ji
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Zakirhusain Abbas Chougule
18-Feb-2022 10:48 AM
Bahut hi sundar Rachna
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Dr. Arpita Agrawal
18-Feb-2022 11:59 AM
हार्दिक आभार आदरणीय
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